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उन दिनो उत्तर प्रदेश में यू पी बोर्ड की हाईस्कूल और इण्टरमीडिएट परीक्षा
का परिणाम एक बड़ी खबर हुआ करती थी। दूसरे बोर्ड इतने प्रचलित नहीं थे। गली-मोहल्लों
के मध्यम वर्गीय परीवारों में तो लोग दिल
थाम कर रिजल्ट की प्रतीक्षा किया करते, भले ही घर का कोई बच्चा परीक्षा नहीं दिया हो।
रिश्तेदारों, अड़ोसी-पड़ोसी के बच्चों पर भी खास निगाह रहती। परीक्षा परिणाम भी आज
की तरह विषय वार, अंक सहित, नेट पर देखने की सुविधा नहीं थी। नेट क्या, उन दिनों
फोन या टीवी का भी प्रायः नामोनिशान नहीं था। आज यू0पी0 बोर्ड परीक्षा 1976 का हाईस्कूल
का रिजल्ट निकलने वाला था। जिनके घरों के बच्चे हाई स्कूल की परीक्षा दिये थे वे तो जानने के लिए उत्सुक थे ही, पूरा मोहल्ला रिजल्ट की प्रतीक्षा कर रहा था। घर
से बाहर निकलते ही चाय पान की दुकान पर बैठे लोग पूछ बैठते..का हो ? आज रिजल्ट निकसे वाला हौ न..? देखा, जंगली कs का होला ! पास नाहीं भयल तs ओकर बपवा जहर खा लेई । दूसरा कहता...काहे ऐसन कहत हउवा...? भगवान करे पास हो जाये! ओकर सांस तs बेटवा के रिजल्ट में
अटकल हौ। ओकर सपना हौ कि जंगली इंजिनियर बने। देखा मुन्नवां कs का होला। बेचारा बड़ी कष्ट उठाके पढ़ले हौ।
मोहल्ले वाले दो ही बातें जानते थे...पास या फेल। प्रथम का स्वाद शायद तब
तक उस मोहल्ले में लोगों ने नहीं चखा था। कभी कोई प्रथम श्रेणी में पास हुआ भी होगा
तो लोगों को इसका ज्ञान नहीं था। दोपहर बीतते-बीतते अखबार वाला..हाईस्कूल..हाईस्कूल..हाईस्कलू का रिजल्ट
चीखते हुए मोहल्ले से गुजरा तो मोहल्ले वाले जंगली और मुन्ना का रिजल्ट जानने के
लिए बेताब हो उठे। परिणाम मोहल्ले के लोगों के लिए धमाकेदार था। जंगली प्रथम तो
मुन्ना द्वितीय श्रेणी में पास हुआ था। जंगली के पापा की खुशी का ठिकाना न था। वे
अखबार लेकर पूरे मोहल्ले में घूम-घूम कर अपने बेटे की तारीफों के पुल बांधते फिर
रहे थे। उनका बेटा क्या था अलादीन का चिराग था। जो छू ले वही हो जाय, जो मांगो वही
ला दे। वे सबसे गर्व से कहते...हे देखो, मेरा बेटा प्रथम श्रेणी में पास हुआ है।
तुम देखना मैं उसे इंजिनीयर बनाउंगा..हे देखो, अब कोई माई का लाल रोक नहीं सकता।
हे देखो...क्या गज़ब का नम्बर पाया है ! चबूतरे पर बैठे, पान घुलाये, मुँह फुलाये,
बड़ी सी तोंद वाला सरदार जो बहुत देर से उनकी बातें सुन रहा था, अचानक से उठा और
गली में किनारे पिच्च से पान थूक कर बोला...का कहत हउआ...! अभहिन तोहें नम्बर कैसे मालूम चल गयल ? तोहरे लइका कs फोटू छपल हौ का अखबारे में...? टॉप करे वाले 20 लइकन कs सूची देहले हौ..! एहमें तs जंगली कs कत्तो नाम नाहीं हौ !! कौनो पेसल अखबार खरीदले हउवा का कि जेहमें
नम्बरो छपल हौ..? नाहीं तू सबके बुड़बक समझला का..? जंगली के पापा एक पल के लिए झिझके फिर शुरू हो गये...मार्कशीट नहीं मिला
तो क्या..हे देखो, मैं जानता हूँ सब पेपर में डिक्टिंशन होगा मेरे बेटे का। तुम सब
जलते हो मेरे बेटे से..हे देखो, पहले तो तुम लोग यह भी नहीं मानते थे कि मेरा बेटा
फस्ट आयेगा..हे देखो, आया कि नहीं आया
? हे देखो, ओसेहीं नम्बर भी देख लेना। अखबार में फोटू
भी छपेगा..! हे देखो, बहुत अच्छे नम्बर से पास हुआ है
मेरा बेटा। मुन्ना भी उसके संग रहकर सेकेंड डिवीजन से पास हो गया। हे देखो, संगति
का असर होता है। हे देखो...उसका भी कल्याण हो गया। सरदार के साथ-साथ सभी खड़े लोग
उनका पुत्र प्रेम भौचक हो आँखें फाड़े
देखते रह गये। सरदार
बोले...कोई तोहरे बेटवा से नाहीँ जलत। सबके तोहरे बेटवा पे गर्व हौ। तोहार बेटवा
मोहल्ला कs नांव ऊँचा कइले हौ..मगर तू जब ढेर हांके
लगला तs सबकर सुलग के कलाबत्तू हो जाला। खाली भांषड़े
झोकबा कि मिठाई-सिठाई भी आई राम भंडार से ? मिठाई की क्या बात है...हे देखो, मिठाई पर
से आओ-जाओ...अभी मंगाता हूँ.....हे देखो, मिठाई खिलाने से कौन भागता है...? फस्ट आया है मेरा बेटा। उन्होने सभी को खूब मिठाई खिलाई और देर शाम तक
पूरे मोहल्ले में जंगली के फस्ट आने और उनके पापा के मिठाई खिलाने की चर्चा का
बाजार गर्म रहा। दूसरी ओर मुन्ना द्वितीय श्रेणी पा कर दुःखी था। उसे जंगली के
पापा की गर्वोक्ति बहुत खल रही थी। वह अफसोस करने के सिवा और कर भी क्या सकता था। आनंद
की माँ को इस बात का संतोष था कि इन परिस्थियों में भी मुन्ना का साल बर्बाद नहीं
हुआ और वह द्वितीय श्रेणी में ही सही, पास हो गया।
( जारी.....)
यादें बहुत दूर तक ले जाती हैं।
ReplyDelete1.फस्ट
ReplyDelete2.सेकेंड
3.कक्षोन्नति
बनना बिगड़ना सब उसी पर निर्भर--आनंद पर
बहुत सुन्दर प्रस्तुति ||
बधाई स्वीकार करें ||
पुरानी यादों को समेटने की अर्थपूर्ण कोशिश !
ReplyDeleteआनन्द भी किसी फेनामेना से कम थोड़े हैं आसार लगने लगे हैं !
ReplyDeleteयादें हमेशा साथ रहती हैं.
ReplyDeletepandeyji nice to see you again after long time. i read allyour posts and just speachless.
ReplyDeletegaurav...
ReplyDeleteजानकर खुशी हुई और होती यदि परिचय भी जान पाता।
हाई स्कूल के परिणामों पर जीवन के बड़े निर्णय लेने की परम्परा है हमारे यहाँ।
ReplyDeleteपरीक्षा परिणामों व उसके परिणामों पर रोचक लेखन किया है.जीवन के ये दो चार वर्ष जीवन की दिशा तय कर देते हैं.
ReplyDeleteघुघूतीबासूती
बहुत दिनों बाद आनन्द ने अपनी यादों मे जाकर,ऊन दिनों की हालात को उजागर किया है,पढ़कर अछ्छा लगा.
ReplyDeleteजमुनी ' की जानकारी नीचे प्रस्तुत कर रहा हूँ । आप इसे पढ़ने की कोशिश करें एवं उसके बाद मुझे इस पुस्तक के संबंध में अपने विचारों से मुझे अवगत कराएं ।
ReplyDeleteलेखक- मिथिलेश्वर
प्रकाशक-राजकमल प्रकाशन,प्रा.लि.
1B,नेताजी सुभाष मार्ग,
नई दिल्ली-110002
मूल्य- रू.175/ (Without Discount)
मेरे पोस्ट पर आपका स्वागत है । धन्यवाद ।
Achhi post.
ReplyDeleteआपका पोस्ट अच्छा लगा । .मेरे नए पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा । धन्यवाद ।
ReplyDeleteअच्छी पोस्ट |यादें ही तो धरोहर होती हैं |
ReplyDeleteआशा
Your thoughts are reflection of mass people. We invite you to write on our National News Portal. email us
ReplyDeleteEmail us : editor@spiritofjournalism.com,
Website : www.spiritofjournalism.com
प्रस्तुति अच्छी लगी । मेरे नए पोस्ट पर आप आमंत्रित हैं । नव वर्ष की अशेष शुभकामनाएं । धन्यवाद ।
ReplyDeleteबहोत अच्छा लगा आपका ब्लॉग पढकर ।
ReplyDeleteनया हिंदी ब्लॉग
हिन्दी दुनिया ब्लॉग
सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeletevikram7: हाय, टिप्पणी व्यथा बन गई ....
@मध्यम वर्गीय पिता जिनकी कई संताने होती हैं, वे अपनी प्रारम्भिक सतांनो पर ही जोर आजमाइश कर इतना टूट चुके होते हैं कि बाद के संतानो के लिए न उनके तन में शक्ति शेष बची रहती है न मन में।
ReplyDeleteकितनी मार्मिक बात है ...
यादें जीवन भर साथ चलती है!...बहुत सुन्दर रचना....आभार!
ReplyDeleteयादें हमेशा साथ रहती हैं
ReplyDeleteअपने हाइस्कूल के रिजल्ट के दिन की याद आ गई । सुंदर प्रवाही प्रस्तिति ।
ReplyDeletewakai pahle ke samay me pareksha parinaam aane ke samay aisee hee manah sthith hoti thee..bahut hee rochak tareeke se likha gaya shandaar lekha sadar badhayee aaur sadar amantran ke sath///
ReplyDeleteमैं भी यू.पी.बोर्ड का विद्यार्थी रहा था.... आपकी इस सुन्दर प्रस्तुति ने मुझे भी उन दिनों की याद दिला दी
ReplyDeleteआभार
बहुत रूचिकर पोस्ट । मेरे नए पोस्ट "बिहार की स्थापना का 100 वां वर्ष" पर आपकी बहुमूल्य प्रतिक्रियाओं की आतुरता से प्रतीक्षा रहेगी ।
ReplyDeleteधन्यवाद ।
आपका भी मेरे ब्लॉग मेरा मन आने के लिए बहुत आभार
ReplyDeleteआपकी बहुत बेहतरीन व प्रभावपूर्ण रचना...
आपका मैं फालोवर बन गया हूँ आप भी बने मुझे खुशी होगी,......
मेरा एक ब्लॉग है
http://dineshpareek19.blogspot.in/
बहुत सुन्दर
ReplyDeleteयाद आ गया वो ज़माना जब हम भी इसी तरह U P Board के परीक्षा परिणाम के लिए व्यग्र हुए थे.
मजा आ गया देवेन्द्र जी....आपके इस ब्लॉग को आज पहली बार पढ़ रहा हूँ मैं और लगातार तीन पोस्ट पढ़ डाली...मुझे इस तरह की बातें पढ़ना बहुत अच्छा लगता है...
ReplyDeleteबहुत ही शानदार ब्लॉग है ये आपका और कितनी कड़ियाँ आपने लिख दी हैं....वाह!!!!! :)
सार्थक और सटीक प्रस्तुति.
ReplyDeleteअत्यन्त रोचक ! सन्तुलित गद्य ! गुथा हुआ , प्योर देसी !
ReplyDeleteअत्यन्त रोचक ! सन्तुलित गद्य ! गुथा हुआ , प्योर देसी !
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