यादें.. अनगिन यादें। समुंद्र में उठती लहरों सी, पहाड़ी झरनों सी, सुफेद फेनिल धारों सी, गंगा की शांत लहरों में चंदा के पदचापों सी. यादें.. अनगिन यादें.
यादें उन स्वप्नों की जो अनदेखे दिख गए थे अपने शैशव काल में, यादें उन संकल्पों की जो मंदिर की घट्टियों की गूँज बनकर रह गईं, यादें उन दिवास्वप्नों की जो यथार्त की धरातल पर कभी खरी नहीं उतरीं। यादें उन मित्रों की जो बहुत करीब से होकर गुजर गए। यादें ..अनगिन यादें.
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एक बच्चा गहरी नींद में सोया है। अचानक जोर से चीखता है..माँ s s s . सब जाग जाते हैं। पिता जी उठकर बत्ती जलाते हैं। बच्चा और जोर से चीखता है...नहीं s s s s और बरामदे की तरफ इशारा करते हुए आँखें बंद कर लेता है। उसके पिता जी बौखलाए हुए हैं। उसे गोद में उठाकर बरामदे की ओर ले जाते हैं, प्यार करते हैं, पूछते हैं, "क्या हुआ? कुछ भी तो नहीं है, आँखें खोलो !" बच्चा बुरी तरह डरा हुआ है, आँखें नहीं खोलता, बस जोर-जोर से रो रहा है। पिताजी उसे बल्ब के पास ले जाते हैं। उसकी माँ पूछती हैं.. बताओ, क्या देखा ? सब समझ जाते हैं कि बच्चा कोई भयानक स्वप्न देखकर डर गया है। पिता जी झल्ला जाते हैं। उठाकर बच्चे को उसकी माँ की गोद में फेंक देते हैं। माँ तो माँ होती है। प्यार से दूध पिलाती है, पूछती है, आँख खोलने को कहती है। बच्चा डरते-डरते आँखें खोलता है, जोर से चीखता है...शे s s s र...फिर बेसूध हो जाता है.
(जारी....)
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ReplyDeleteदेवेन्द्र जी,
ReplyDeleteकई बार पढ़ी आपकी पोस्ट। हर बार लग रहा था कि अधूरी सी लग रही है। लेकिन आपकी पुरानी छवि को देखते हुये बात हजम नहीं हो रही थी। आप बेचौन आत्मा हैं तो हम भी लटकती आत्मा(चमगादड़ स्टाईल) हैं, हर चीज को नीचे से ही देखते हैं। अब कहीं जाकर देखा है ऊपर, 1. लिखा दिखाई दिया।
इंतज़ार रहेगा अगली पोस्ट का।
नये ब्लॉग की बधाई।
और भाईजी, आप तो पुराने ब्लॉग हैं, वर्ड वैरिफ़िकेशन का लाभ क्या है?
@mo sm kaun..?
ReplyDeleteAbhi naya blog bana kar saja hii raha tha ki computer kharab ho gaya. Ek sayaber kafe men bathkar computer thiik kara raha hoon..Asuvidha ke liye khed hai..
yadon ka ek lamba silsila chalana chahta hoon..iske liye naye blag kii avashyakta mahsoos huii. aap sabhii ka sneh apekshit hai.
..Abhar.
Hmmm...
ReplyDeleteEven i am waiting for what you are coming up with .
एक बेहद उम्दा पोस्ट के लिए आपको बहुत बहुत बधाइयाँ और शुभकामनाएं !
ReplyDeleteआपकी पोस्ट की चर्चा ब्लाग4वार्ता पर है यहां भी आएं !
इन यादों का मनोवैज्ञानिक विश्लेषण भी होना चाहिए ? बहुत कम उम्र की यादेँ हैं.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर. अक्सर यादों में खो जाने को मन करता है
ReplyDeleteखुश हूँ यह गद्य का ब्लागीय - आरम्भ देखकर !
ReplyDelete'' और भी फलित होगी यह छवि ,
जागे जीवन , जीवन का रवि ! ''
आरंभिक अनुच्छेद में यादों का प्राकृत रूप ! वहीं दूसरे संस्मरण-पथ पर डग भरता बाल-मन ! बाल-रूपक ! शुरू कर दिया हूँ , देखता हूँ कहाँ तक पहुंचता हूँ आज !
AAPAKI YAADE AUR MERI DEKHE BALAJI SACHCHI AAP-BITI.
ReplyDeleteबिल्ली भी शेर हुवा करती थी
ReplyDeleteमाँ मुझे दिखा कर डराया करती थी ।