24 August, 2010

यादें-2.

वैसी ही एक और रात (यादें-1) सहसा कौंध जाती है यादों के सन्नाटे में.....!

....बच्चा अब कुछ बड़ा हो गया है। लगभग 4 या 5 बसंत पार कर लिए हैं उसने मगर अभी भी माँ का दूध पीने के लिए मचलता रहता है। माँ, बच्चे को दूध पिला रही हैं। उसके पिताजी, बड़े भैया उसी कमरे में सो रहे हैं। अचानक बच्चे को पिता की दहाड़ सुनाई पड़ती है..., " बंद करो ! फेंक दो गली में बदमाश को ! इतना बड़ा हो गया है फिर भी माँ का दूध पीता है !" बच्चा डर कर माँ का स्तन छोड़ देता है। सोचता है- मैं सबसे छोटा हूँ फिर भी पिताजी मुझे बड़ा क्यों कहते हैं ? कुछ देर शांत रहने के बाद फिर से माँ को कुरेदने लगता है। दूध पीने के लिए मचलने लगता है। माँ समझाती है, "तुम अब बड़े हो गए हो, अब तुम्हें दूध नहीं पीना चाहिए"। बच्चा नहीं मानता। पिता जी उठते हैं और माँ के कान में, कुछ धीरे-धीरे समझाते हैं। बच्चा समझ नहीं पाता। माँ उसे दूर सुला देती है पर वह नहीं मानता। माँ के आँचल में दुबक कर फिर से दूध पीना प्रारंभ कर देता है लेकिन यह क्या ! दूध का स्वाद तो बदल चुका है ! मीठा दूध अचानक कडुवा कैसे हो गया ! वह जोर-जोर से रोने लगता है. ( दरअसल माँ ने, पिता के कहने पर, दूध में, पान में लगाया जाने वाला कत्था लगा दिया था ) रोते-रोते बच्चा पिताजी को घूरता है, मानों कह रहा हो -सब इसी की बदमाशी है ! बच्चे के बर्दास्त करने की सीमा टूट जाती है . गुस्से में और जोर-जोर से दूध पीने लगता है . कुछ देर बाद दूध फिर से मीठा हो जाता है. उसकी खुशी का ठिकाना नहीं रहता. दूध पीते-पीते खुशी-खुशी सो जाता है.

(बच्चा कुछ और बड़ा हो गया है। माँ, बड़े भाई के साथ गाँव आया है। कौन सा गाँव, कौन सा शहर उसे कुछ याद नहीं....)

.....एक झोपड़ी है। माँ, उसके बड़े भाई के साथ कहीं बाहर जा रही है। बैलगाड़ी घर के बाहर खड़ी है। वह जोर-जोर से रो रहा है, साथ जाने की जिद कर रहा है, माँ उसे समझा रही है लेकिन वह नहीं मान रहा। माँ उसे एक औरत की गोद में देकर, बैलगाड़ी में बैठकर चली जाती हैं। गाड़ी जा चुकी है। वह औरत उसे मनाने की कोशिश कर रही है, वह चुप ही नहीं हो रहा। अचानक उसे औरत के स्तन दिखालाई पड़ते हैं ! वह धीरे-धीरे, अपनी नन्हीं-नन्हीं उँगलियों से उसे मसलने लगता है, रोते-रोते उसमें मुँह लगा देता है। औरत हंस रही है। वह देख रहा है। दूध चूसने का प्रयत्न करता है पर स्तन से दूध ही नहीं आ रहे ! वह क्रोधित हो जाता है और जोर से निप्पल काट लेता है ! औरत चीख कर उसे जमीन पर पटक देती है। बच्चा डर कर भाग जाता है।

....गोधुली बेला है। बैलों के गले में बंधी घंट्टियों की धुन बच्चे के कानों में पड़ती है। वह दौड़ा-दौड़ा आता है । माँ उसे दहक कर गोदी में उठा लेती है। वह खुशी के मारे चीखता है। खुशी ! इससे बड़ी खुशी की कल्पना भी उसके जेहन में नहीं है। वह औरत माँ को उसकी शरारत हंसते और शिकायत भरे स्वरों में सुना रही है। वह माँ को वह जगह दिखाती है जहाँ बच्चे ने काटा था। बच्चा गौर से देखता है। नंगे-तने स्तन को... जिसके निप्पल के चारों ओर नीला घेरा सा बना है , कुछ याद कर माँ के स्तन को छूता है। कई प्रश्न उसके बाल मन में कौंध जाते हैं। माँ और इस औरत के स्तन में इतना अन्तर क्यों है ? माँ के स्तन से इतना मीठा दूध आता है और इसके स्तन से नहीं ! क्यों ? फिर सब कुछ भूल जाता है। उसे माँ का स्तन ही अधिक अच्छा लगता है क्योंकि इससे मीठा दूध आता है। वह उस औरत को देखकर दांत चिढ़ाता है, "ईं ...s...s..s...s...s.. ...!" माँ उसे बिगड़ती हैं। वह चुप हो जाता है।
(जारी....)

11 comments:

  1. मना कर रहा हूँ अभी...कथा की लय पकड़ने की कोशिश!!

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  2. दोनों किश्ते एक साथ पढ़ लीं हैं पर ज़ारी रहने से डरके टिप्पणी फिलहाल रोक ली है कि पता नहीं कथा को आगे कौन सा मोड दे दें :)

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  3. बालमन में घुसने का प्रयास कर रहा हूँ पढ़ने के बाद।

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  4. अगले भाग का इंतजार, बढ़िया लगा भाषा प्रवाह ।

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  5. अगले भाग का इंतजार...

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  6. intzaaar hame bhi karna hi parega.........:)
    waise aapne maaa aur baal man ko ukerne ki bahut khubsurat koshish ki hai.......

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  7. बहुत खुब अगली कडी का इंतजार है..

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  8. बैठे-बिठाले एक बहुत बड़ा काम हाथ में ले लिया है मैने...एक ओर हिन्दी साहित्य का अल्पज्ञान दूसरी ओर भावनाओं का उमड़ता समुंद्र..असीम संभावनाएँ हैं इस कथा में...देखें कहां तक निर्वहन कर पाता हूँ!
    ..इस ब्लॉम से जुड़ने और मेरा उत्साह वर्धन करने के लिए आप सभी का तहे दिल से आभारी हूँ.

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  9. बच्चा बहुत बदमाश लगता है.न जाने आगे क्या-क्या करने वाला है.

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  10. माँ तो माँ होती है

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  11. @ साहित्य का अल्पज्ञान ...................
    यह क्या कह रहे हैं आप ?
    --- जीवन में जिया गया व्यावहारिक ज्ञान ही मार्मिक लेखन बन कर साहित्य हो जाता है ! किसी किताब पढ़े जाने की जरूरत नहीं ! बड़ा 'लेटेस्ट' किस्म का होता है यह , आनंदप्रद और अछूता !
    वर्णित घटनाएं घटती हैं पर हम ध्यान में नहीं लाते | पढ़ते हुए कुछ सन्दर्भ ताजे हो गए ! सुन्दर !

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