01 November, 2010

यादें-20 ( जीरो-जीरो थ्री )


              (दूसरे दिन, निर्धारित समय पर तीनो उसी स्थान पर एकत्रित हुए)

मुन्नाः आओ, बैठो। क्या सोचा तुम लोगों ने ?

आनंदः बहुत सोचा, बहुत सोचा, इतना सोचा कि रात भर नींद नहीं आई।

विशालः वही हाल तो अपना भी था।

मुन्नाः मैं नींद की नहीं, अपने प्रश्नों के उत्तर की बात कर रहा हूँ....

आनंदः हाँ, हाँ। तुम्हारे प्रश्नों के उत्तर मैं सुझाता हूँ। चलो प्रश्न करो...। तुम्हारा पहला प्रश्न था....संस्था का नाम..। तो नाम में क्या रखा है ! कुछ भी रख लो..इससे क्या फर्क पड़ता है ? जब उसका प्रचार ही नहीं करना है तो नाम क्या...बाल जासूस’..रख लो।

विशालः बाल जासूस यह भी कोई नाम हुआ..! ‘बाल जासूस तो हम हैं ही...! हमारी संस्था का नाम क्या होगा यह सोचो । 007 कैसा रहेगा ?

मुन्नाः 007...क्या हम सात लोग हैं..?  फिर यह तो नकलची बंदर वाली बात हुई..007 जेम्स बांड...!

विशालः तो 003 रख लो..

आनंदः जीरो-जीरो क्यों केवल थ्री क्यों नहीं ?

विशालः मूर्ख हो क्या ? तुम्हें नाम कहते कुछ शर्म नहीं आती..? ‘थ्री ! संस्था का नाम वह भी केवल थ्री ! अरे, गर्व से कहो जीरो-जीरो थ्री’ !

मुन्नाः हाँ, हाँ,  जासूसी संस्था का नाम कुछ ऐसा ही ऊटपटाँग होता है। वाह !   क्या नाम है...! …’003। तीन लोगों की संस्था..जीरो-जीरो थ्री

आनंदः तो ठीक रहा..हम लोगों की जासूसी संस्था का नाम रहेगा..003।

          (सभी एक स्वर में जीरो-जीरो थ्री पर सहमत हो जाते हैं।)

आनंदः तुम्हारा दुसरा प्रश्न है,उद्देश्य और संविधान’ । यह भी कोई मुश्किल काम नहीं है। हमारी संस्था एक जासूसी संस्था है तो इसका मूल उदेश्य भी यही होना चाहिए...बुराई का अंत। कोई भी संस्था बुरे उद्देश्य और बुरे काम के लिए नहीं बनाई जाती। किसी भी संस्था का अच्छा-अच्छा उद्देश्य और संविधान चुरा कर लिख लो। इसमें कौन सी बड़ी बात है !

मुन्नाः हाँ, यह ठीक रहेगा। मैने सुना है कि हमारे देश का संविधान भी इसी तरह तैयार किया गया है ! दूसरे देशों के संविधान से अच्छी-अच्छी बातें नकल करके !

विशालः हाँ,अच्छी बातें तो किसी की भी ली जा सकती है..इसे नकल थोड़ी न कहते हैं। हमारे नेताओं ने हमें यही सिखाया है !

मुन्नाः हेड ऑफिस, पदाधिकारी, कोष की स्थापना पर भी अपने विचार प्रकट कर ही दो।

आनंदः हेड ऑफिस जहाँ बैठे हैं, पदाधिकारी हम तीनो ही होंगे हाँ, कोष और कोषाधिकारी का चुनाव कठिन काम है। क्यों न इस बिंदु को उड़ा दिया जाय ?..वह कौन सा मुहावरा है....जिसमें बासुंरी बजबे नहीं करती..!

मुन्नाः न रहेगा बांस न बजेगी बांसुरी !

आनंदः हाँ, हाँ वही.. लगता है मन लगाकर पढ़......

मुन्नाः हाँ, मन लगा कर पढ़ रहा हूँ...लेकिन तुम विषय से न भटको...यहाँ इसका प्रयोग गलत है। बिना कोष के कोई संस्था नहीं  चल सकती। जब बिना पैसे के घर नहीं चलता तो संस्था क्या चलेगी ?

विशालः बात तुम्हारी ठीक है। लेकिन हमारी संस्था कोई दुर्गापूजा समीति’ तो नहीं है कि घर-घर घूम कर चंदा मांगेगे ? इसका प्रचार भी नहीं करना है..! तो ले दे कर हम तीन ही तो हैं जो इसके लिए पैसा जुटाएंगे।

आनंदः हाँ । सोचो, पैसा आएगा कहाँ से ? क्या चोरी करेंगे...? हा..हा..हा..! चोर को पकड़ने के लिए संस्था बनी, खुद ही चोरी करने लगी....!

विशालः पागल हो क्या ! जो मन में आए वही बोले जा रहे हो.....?

मुन्नाः कोष के लिए चोरी करने की जरूरत नहीं है, न तो हमें किसी खजाने की ही जरूरत है। हमें बस करना यह होगा कि अपने जेब खर्च के पैसे से थोड़ा-थोड़ा पैसा जुटाना होगा। जिससे संस्था के कमरे की सफाई, कापी-पेन आदि का खर्च निकल जाय । किसा को चोट-वोट लगेगी तो घर वाले हैं ही खर्च करने के लिए ! बस हमारा काम होगा कि उनको सही समय पर सूचित कर दें। चलो हम लोग एक-एक रूपया देकर संस्था के कोष की स्थापना करें। मैं 5 पैसे का एक गुल्लक खरीद लाता हूँ उसी में पैसा डालते हैं। गुल्लक इसी जगह रखा जाएगा। धीरे-धीरे जब गुल्लक भर जाएगा तो संस्था के नाम बैंक में एक खाता खुलवा लेंगे।

विशालः ठीक है।

मुन्नाः लेकिन यह तो सोचो कि तब तक क्या कार्यालय इतना गंदा रहेगा....?

आनंदः नहीं, कार्यालय का कमरा साफ-सुथरा रहना चाहिए।

विशालः यह छोटा सा कमरा तो हम सब मिलकर अभी साफ कर सकते हैं।

मुन्नाः अभी नहीं, इसके लिए छुट्टी का दिन ठीक रहेगा।

आनंदः कल ही तो संडे है। कल हम सब मिलकर इस कमरे को चमका देंगे।

विशालः ठीक है, कल सुबह से हम इस काम में जुट जाते है।

           ( तभी गली में, उनके कमरे के पास से, क्रिकेट खेलने वालों की टोली गुजरती है, लड़कों का शोर उनकी कानों में गूंजता है, आनंद और विशाल खुद को रोक नहीं पाते और संस्था के बारे में सोचना छोड़, घर से बाहर निकलने के लिए उद्यत होते हैं। )

मुन्नाः ठीक है, तुम लोग जाओ, तब तक हम कुछ पढ़ाई कर लें । कल सुबह सफाई अभियान में लगना है।

           आनंद और विशाल कल मिलने का वादा कर चले जाते हैं। मुन्ना मन ही मन मुस्कुराता है कि सारा काम उसकी योजना के अनुरूप ही हो रहा है ! इसी बहाने कमरे की सफाई हो जाएगी और संस्था के नाम पर जो पैसा जुटेगा सो अलग !
(जारी.....)

8 comments:

  1. रोचक रहा ये भाग भी। आपको दीपावली की बधाई और मंगलकामनायें।

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  2. बढियां तजवीज हा हा

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  3. आज पहुंचने में देर हुई सो खेद है ! यहां पर मामला मुन्ना के निहित मंतव्य के चलते मजेदार हो गया लगता है :)

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  4. बहुत खूब देवेन्द्र जी ये कड़ी भी खूब जमीं
    धनतेरस की हार्दिक शुभकामनायें

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  5. दीपावली के इस पावन पर्व पर ढेर सारी शुभकामनाएं

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  6. ज़ीरो ज़ीरो थ्री के बारे में आगे पढ़ना पसंद करूँगा...बढ़िया पोस्ट...धन्यवाद

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  7. kash hamare neta hamein kuchh aisa sikha pate jo sirf samvidhan ki nakal karne se alag hota.
    waise badhiya post...
    badhai

    age ke post ka intezaar rahega

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  8. 007 से आगे बढ़्कर 008 या 009 क्यों नहीं
    श्रृंखला अच्छी चल रही है

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