27 October, 2010

यादें-19 ( तीन जासूस )

यादें-1,यादें-2, यादें-3, यादें-4,यादें-5, यादें-6,यादें-7,यादें-8, यादें-9,यादें-10,यादें-11, यादें-12, यादें-13, यादें-14, यादें-15, यादें-16 , यादें-17,  यादें-18 से जारी.....

            किताबें....किताबें....किताबें....चाहे जैसी भी किताबें हों यशपाल की झूठा सच हो या प्रेमचंद की कायाकल्प, अज्ञेय की शेखर एक जीवनी हो या लौलिता, संभोग से समाधी हो या जेम्स बांड,जासूस विजय हो या राम-रहीम के पॉकेट बुक्स,कुशवाहा कांत की लाल रेखा हो या कॉमिक्स। वे किताबें जो इस उम्र के बच्चे देखना भी पसंद नहीं करते और न ही उन्हें समझने लायक बुद्धी ही विकसित हो पाई थी,पूरी या आधी अधूरी आनंद की आँखों से गुजरती जरूर थीं। आनंद के पिता उसे किताबी कीड़ा कहते थे। मुन्ना और विशाल,आनंद और जंगली के किताबी कीड़ापने को देखकर बहुत खीझते थे मगर धीरे-धीरे राम-रहीम,इंद्रजाल कॉमिक्स और बाल पॉकेट बुक्स चाव से पढ़ने लगे। इसके आगे की लक्ष्मण रेखा आनंद की तरह, उन्होने कभी पार नहीं की।

            जासूसी पॉकेट बुक्स पढ़ते-पढ़ते आनंद को प्रेरणा मिली कि क्यों न वह भी अपने दोस्तों के साथ मिल कर एक जासूसी संस्था खोले और राम-रहीम बाल जासूस की तरह जासूसी किया करें ! बदमाशों को पकड़वा कर पुलिस के हवाले कर दें,देश का भला करें। उसने अपनी इच्छा मुन्ना से बताई,मुन्ना ने विशाल से और अगले ही पल तीनो इस प्रस्ताव से सहमत हो गये। मुन्ना के कमरे में तीनो उदीयमान जासूसों की प्रथम बैठक हुई । संस्था के गठन पर गुप्त मंत्रणा शुरू हुई....
  
मुन्नाः  हम लोग अपनी संस्था का नाम क्या रखेंगे ?

विशालः  तुम्हीं लोग ज्यादा पढ़े लिखे हो, हम तो अब स्कूल जाते ही नहीं…..

आनंदः  क्यों ! तुम भी तो जासूसी किताबें पढ़ते हो, दिमाग तो तुम्हारा भी तेज है !

मुन्नाः पहले यह बताओ कि हम लोग क्या करेंगे ?सबको बोर्ड टांग कर बता देंगे कि हमने एक जासूसी संस्था खोली है, जिसे जासूसी कराना हो हमारे पास आवे ?

विशालः (हंसते हुए) घर वालों को मालूम हुआ तो बड़ी तोड़ाई होगी……

आनंदः  हाँ, बात तो ठीक है। मेरे पिताजी को पता चला तो मेरी खाल ही उधेड़ देंगे ! 
       
मुन्नाः तो मेरे पापा बहुत सीधे हैं !  क्या उनका गुस्सा तुम सब जानते नहीं हो ?   
     
आनंदः  जाने दो, हम कोई जासूसी संस्था नहीं खोलेंगे। इसमें तो बाहर वालों से अधिक घर वालों से ही खतरा है !

विशालः इसमें इतना हो हल्ला मचाने, घबड़ाने की क्या जरूरत है ! जासूसी संस्था  खोलने जा रहे हो, देश भक्ति दिखाना चाहते हो, कोई लूडो या कैरम क्लब नहीं  खोलना है कि मजा ही मजा होगा। किताबों में पढ़ते नहीं हो कि हमेशा जान का खतरा बना रहता है !घर वालों की मार से ही डर गए तो जासूसी क्या करोगे ? जासूसी करने में दिमाग के साथ-साथ साहस भी होना चाहिए।

मुन्नाः बड़े हिम्मती बनते हो ! बेवकूफों की तरह मार खाने में क्या बुद्धिमानी है ?

विशालः इसका सबसे सरल तरीका तो यही है कि हम जासूसी तो करें मगर किसी को यह नहीं बतायेंगे कि हम जासूस हैं !

आनंदः हाँ, यह बिलकुल ठीक है। जासूस ऐसे ही होते हैं बाहर से दिखते साधारण आदमी की तरह, भीतर से खतरनाक होते हैं।

मुन्नाः तभी तो जासूसी कर पाते हैं। पुलिस की तरह एक ही रंग का कपड़ा पहने रहेंगे तो चोर उनको देखते ही भाग नहीं जाएंगे ! पता नहीं पुलिस एक ही रंग का कपड़ा क्यों पहनती है ? चोर के पास सायरन बजा कर क्यों पहुंचती है ?...भाग सको तो भाग रे चोरवा, हम पकड़ने आए हैं !

(तीनो हंसने लगते हैं, गंभार चिंतन करते हैं और संस्था के नाम के बारे विचार करते हुए  सोच में डूब जाते हैं । कुछ समय पश्चात मुन्ना ने ही मौन तोड़ा...।)

मुन्नाः यह बताओ कि संस्था का कार्यालय किसके घर में बनेगा ? संस्था चलाने के लिए पैसा कहाँ से आएगा ? मान लो, हम में से कोई मुसीबत में फंस गया तो उसके लिए भी पैसे वैसे का प्रबंध तो करना ही न पड़ेगा। हम तीनों में से किसी के घर में फोन तो है नहीं कि फोन करके बुला लें.....

आनंदः बस बस । तुम तो मास्टर जी की तरह प्रश्न पर प्रश्न ही कीए जा रहे हो ! प्रश्न ही करोगे कि कुछ उत्तर भी बताओगे ? हम लोगों में से सबसे बड़े हो...हम तो अभी आठवीं में ही पढ़ते हैं, विशाल मान लिया पढ़ने नहीं जाता लेकिन तुम और जंगली तो (अपने होठों को गोल करके दोनों हाथ नचाते हुए) बो.s.s.र्ड की परीक्षा देने जा रहे हो, क्या तुम्हारे गुरूजी ने तुम्हें प्रश्न करना ही सिखाया है ? प्रश्न का उत्तर देना नहीं सिखाया ?

विशालः हाँ, ठीक कह रहे हो....

आनंदः यह तो ऐसे प्रश्न कर रहा है जैसे युधिष्ठिर ने यक्ष से किया था...

विशालः हाँ, जबकि हम लोगों में युधिष्ठिर की तरह सबसे बड़ा यही है..!

मुन्नाः अरे...अरे...पागल हो क्या ! जब प्रश्न ही नहीं रहेंगे तो उत्तर कहाँ से दोगे...? तुम लोग तो उल्टे मुझ पर ही नाराज हो रहे हो !मेरे प्रश्नों का मतलब यह है कि कोई भी संस्था खोलने से पहले, किसी को भी, इन जरूरी प्रश्नों के बारे में गंभीरता से विचार कर लेना चाहिए। तुम्हें तो प्रश्नकर्ता का एहसानमंद होना चाहिए कि उसने तुम्हें उत्तर ढूँढने के लिए विवश किया ! कोलंबस के दिमाग में प्रश्न न उठता तो अमेरिका की खोज कैसे होती ? किसी भी रास्ते पर चलने से पहले उस रास्ते पर आने वाली मुसीबतों का ज्ञान करना ही बुद्धिमानी है। बुद्धिमान व्यक्ति मुसीबत में पड़ने से पहले ही खतरा भांपकर उसके निदान का उपाय ढूंढ लेता है,मूर्ख मुसीबत में फंस जाने के बाद अम्मा-अम्मा चीखता है। क्या तुमने बहेलिया और पंछियों की कहानी नहीं पढ़ी…?

आनंदः वाह-वाह ! कितना बढ़िया समझाया है..! तुम तो हमारे मास्टर जी से भी होशियार हो..!

विशालः हाँ,सो तो है लेकिन इसने अपने उपदेश का अंत भी प्रश्न से ही किया...क्या तुमने बहेलिया और पंछियों की कहानी नहीं पढ़ी ? इसका उत्तर यही है कि हाँ, पढ़ी है। हमें मूर्ख पंछियों की तरह जाल में नहीं फंसना है। जाल में फंसने से पूर्व मित्र की सलाह माननी है।

आनंदः यह कहानी यहाँ पूरी तरह फिट नहीं बैठती । पंछी लालची थे इसलिए जाल में फंस गए । हम तो देश की भलाई के लिए जासूसी करने जा रहे हैं।

मुन्नाः हाँ हाँ, ठीक है..जासूस मियाँ, लेकिन खतरा यहाँ भी कम नहीं है। सबसे अच्छा हो कि हम व्यर्थ बकवास करने के बजाय एक कापी में सब बातें लिखते जांय .....

आनंदः एक तरफ प्रश्न, एक तरफ उत्तर...बिलकुल ठीक रहेगा। कापी-कलम...!

मुन्नाः यह लो...मैने पहले से ही सोच रक्खा था..मैं बोलता हूँ लिखते जाओ..हमें संस्था खोलने से पहले निम्न बिंदुओं पर गंभीरता पूर्वक विचार करना होगा..

1 संस्था का नाम
2 उद्देश्य
3 संविधान
4 उद्देश्य की पूर्ति के लिए किए जाने वाले कार्य
5 हेड ऑफिस
6 पदाधिकारी
7 कोष की स्थापना

आनंदः (लिखना रोक कर) कोष…! होश में तो हो…! (आँखें चौड़ी करके) कोष मतलब पैसा…! पैसा कहाँ से आएगा..? और यह सब बिंदु कहाँ से मार लाए…?  मैने राम-रहीम की किसी किताब में नहीं पढ़ा..!

मुन्नाः (हंसते हुए) मैं तुम्हारी तरह दिन में जासूस बनने के ख्वाब नहीं देखता हूँ....। संस्था खोलने के लिए किन-किन बिंदुओं पर विचार करना चाहिए, यह मैंने  तुम्हारे ही बड़के भैया की क्रिकेट की संस्था प्रथम एकादश क्लब के रजिस्टर में देखा है...। उसमें तो रजिस्ट्रेशन, ऑडिट जाने क्या-क्या बकवास लिखा था । जो मेरे भी समझ में नहीं आया। वहीं से उतार लाया हूँ । ज्ञान तुम्हारे ही घर में है और ज्ञानी मैं बना हूँ...! हा...हा...हा...!

आनंदः (आँखे फाड़कर, सहमकर देखते हुए) हें..हें..हें..! तुम ने वीरू भैया का रजिस्टर छू लिया ! देखते तो जो मार पड़ती कि सारी हंसी उड़ जाती ! मैं तो उनकी एक भी चीज नहीं छूता, तुमने उनकी मुशुक देखी है ! ‘काशी व्यायाम शाला में रोज सुबह शाम पहलवानी करते हैं । एक थप्पड़ लगाते तो तुम्हारी बत्तिसी बाहर निकल जाती..!

(आनंद की बातें सुनकर और उसका सहमा चेहरा देखकर, मुन्ना-गोपाल दोनों हंसने लगते हैं)
मुन्नाः (हंसते हुए) इतना डरोगे तो क्या खाक जासूसी करोगे ? वो जासूस क्या जिसे अपने ही घर में रखी चीजों का ज्ञान न हो..!

(बा.s.बू.s..s..s... तभी आनंद को अपने घर से पिता की सिंह दहाड़ सुनाई पड़ती है और वह सहम कर खड़ा हो जाता है।)

आनंदः (बाहर देखते हुए) अरे यार, अंधेरा हो गया ! पिताजी भी घर आ गए ! मैं तो चलता हूँ...!

विशालः मैं..मैं क्या लगा रखा है ? अब सभी चलते हैं । मेरे भी पिताजी ढूँढ रहे होंगे...। बातों-बातों में कब शाम हो गई पता ही नहीं चला ।

मुन्नाः हाँ, यह ठीक रहेगा । रात भर में इन बिंदुओं पर खूब जम के सोच-विचार कर लेना....

विशालः खाना खा के छत पर मिलते हैं,.. क्यों ?

मुन्नाः नहीं...! मुझे पढ़ना भी है.! इस साल बोर्ड की परीक्षा है। रात भर खूब सोच लो फिर कल सुबह स्कूल से लौटकर यहीं मिलते हैं।

             गंभीर मंत्रणा के पश्चात तीनो उदीयमान जासूसों की सभा बर्खास्त हुई। सभी अपने-अपने घर चले गए। किसी को रात भर नींद नहीं आई। सभी रात भर करवटें बदलते रहे...भोर में नींद लगी तो ख्वाब में जासूसी करते रहे।
(जारी....)

6 comments:

  1. सरल सहज बचपन की सुन्दर यादें\ जारी रहे ये सफर। शुभकामनायें।

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  2. गज़ब गज़ब ...बालमन उपन्यासों और कथाओं से कैसे प्रभावित होता है और कैसे सपनें बुनता है क्या खूब लिखा आपने ! बेहतरीन ! साधुवाद !

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  3. किसी भी रास्ते पर चलने से पहले उस रास्ते पर आने वाली मुसीबतों का ज्ञान करना ही बुद्धिमानी है। बुद्धिमान व्यक्ति मुसीबत में पड़ने से पहले ही खतरा भांपकर उसके निदान का उपाय ढूंढ लेता है,मूर्ख मुसीबत में फंस जाने के बाद अम्मा-अम्मा चीखता है।

    kuchh had tak sahmat hoon, karan bhi hain, kai bar apke sochne vicharne ke bad ap jis nirnay par pahunchte hain jaroori nahi ki wo sahi ho ya phir usse behtar koi nirnay na ho.
    aur dusre ye asambhav hai ki kisi bhi cheez se jude har ek pehlu pe vichar karna mumkin ho chahe jo bhi halat hon.

    waise ye sirf vichar hain, asehmati nahi, kathanak ke anusar to kafi janch rahi hain ye panktiyan.

    waise kahani badhiya chal rahi hai, intezaar rahega... :)

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  4. An interesting and full of hummer episode.Very nice one.

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  5. कुछ तमन्नाएं जीवन में कभी भी शुरू की जा सकती हैं ....एक्सपर्ट सलाह के लिए मिलिए ...
    डाक्टर क्रोविस
    चौकाघाट वाराणसी

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  6. चलो जासूस खुद की जासूसी होने से डर गये.
    बहुत सुन्दर सम्वाद ..

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