09 October, 2010

यादें-15( साइकिल की सवारी )



            इसी घुमक्कड़ी में दोनो ने तय किया कि चलो साइकिल चलाना सीखते हैं। मुन्ना अपने बाबा की साइकिल ले आता और दोनो राजमंदिर से गायघाट की ओर जाने वाली चौड़ी गली में, जो दिन के समय प्रायः सुनसान रहती, साइकिल चलाना सीखते। मुन्ना बड़ा था इसलिए जल्दी ही चलाना सीख लिया लेकिन आनंद धीरे-धीरे सीखने का प्रयास कर रहा था। वह आनंद को साइकिल में बिठाकर घुमाने लगा। धीरे-धीरे हिम्मत बढ़ी और दोनो टाउनहॉल के मैदान, कंपनी गार्डेन में जाकर साइकिल चलाने लगे। एक दिन कंपनी गार्डेन में वह आनंद को आगे बिठाकर साइकिल चला रहा था। दिन ढल रहा था। वृक्षों की परछाइयाँ लम्बी हो चली थीं। अपनी धुन में मस्त दोनो मित्र साइकिल की सवारी में व्यस्त थे। एक स्थान पर लोहे के कंटीले तार से मार्ग अवरूद्ध था। कम रोशनी में मुन्ना को कुछ दिखाई न दिया और  साइकिल कंटीले तार के ऊपर  ही चढ़ा दिया ! आगे बैठे होने के कारण साइकिल से पहले आनंद की गरदन तार में  फंस चुकी थी। लोहे के कांटे गरदन में धंस चुके थे ! दोनों उलझ कर वहीं गिर गए। जब तक आनंद संभल कर खड़ा होता मुन्ना ने देखा कि आनंद की शर्ट खून से लाल हुई जाती है ! वह मारे डर के चीखने-चिल्लाने और फुग्गा फाड़कर रोने लगा। आनंद, जिसके गले की नस कट चुकी थी, इस बात से अचंभित था कि मुन्ना क्यों रो रहा है ! आनंद को अभी तक दर्द का एहसास नहीं हुआ था मगर दूसरे ही पल, मुन्ना के इशारे से या दर्द के एहसास ने उसे यह बता दिया कि माज़रा क्या है ! चोट किसे लगी है !! खून किसे बह रहा है !!! और मुन्ना क्यों चीख रहा है !!!!
                   बच्चे चोट से कम, बहते खून को देखकर अधिक घबड़ाते हैं। बहते खून के एहसास ने आनंद को भयभीत कर दिया। दोनो घर की ओर भागे। मुन्ना की अलग समस्या थी। उसे आनंद की चोट का दुःख कम, घर जा कर अपने पीटे जाने का खयाल ही भयभीत किए दे रहा था ! रास्ते भर सिसक-सिसक कर आनंद से कहता जा रहा था, बाबा से मत कहना नहीं तो वे हमारी चमड़ी उधेड़ देंगे ! बहुत देर हो चुकी है । वे पहले ही अपनी साइकिल ढूँढ-ढूँढ कर गुस्सा कर रहे होंगे। जब पता चलेगा तो बहुत मारेंगे। बाबा से मत कहना..आनंद एक हाथ से जख्मों से बहते खून को रोकने का असफल प्रयास करता मुन्ना को ढांढस बंधाए जा रहा था, मत घबराओ, मैं किसी से नहीं कहूँगा कि मुझे तुमने गिराया है बल्कि यह कह दुंगा कि दौड़ते वक्त कांटों से उलझ कर गिर पड़ा था !” घर पहुँचते-पहुँचते आनंद खूने से लथपथ हो, निढाल हो चुका था। एक दर्द से बेहाल दूसरा पिटे जाने के भय से आक्रांत। दोनो को  इतनी अक्ल नहीं थी कि वे पहले डाक्टर के पास जांय, अपना इलाज कराएं और घर वालों को सुचित करें। आनंद के घर वालों ने उसकी यह दशा देखी तो तुरंत आनंद को लेकर डाक्टर के पास पहुंचे। तीन टांके लगे। मरहम पट्टी के बाद डाक्टर ने कहा, अब घबड़ाने की कोई बात नहीं है । भगवान का लाख-लाख शुक्र है कि श्वांस की नली में कोई चोट नहीं पहुँची वरना खतरा बड़ा हो सकता था। आनंद ने अपना वादा निभाया, उसके घर वालों को यह जाहिर होने नहीं दिया कि उसे मुन्ना ने गिराया था वरना मुन्ना के बाबा से पहले उसके बड़े भाई, उस पर टूट पड़ते।
            यह होता है बचपन और यह होती है बचपन के मित्रों की मासूम भावनाएँ..एक तरफ मुन्ना था जिसे आनंद के कष्ट से ज्यादा इस बात की चिंता थी कि कहीं इसने घर में बता दिया तो बाबा बहुत मारेंगे ! दूसरी तरफ आनंद था जिसे अपने दर्द से अधिक इस बात की चिंता थी कि उसका मित्र दुःखी होकर रो रहा है और डर रहा है कि कहीं मार न खा जांय। एक तरफ दोस्ती की कोमल भावनाएँ थीं तो दूसरी तरफ बचपन में बाबा से लगने वाला स्वाभाविक भय। बाल-मन इतना मासूम होता है कि वह चोट के दर्द से भी अधिक 'अपराध बोध' से परेशान होता है। मुन्ना को एक तरफ इस बात का भय था कि बाबा को अब पता चल जाएगा कि उनकी साइकिल वह चोरी से ले आता है दूसरी ओर इस बात का दुःख कि उसके कारण आनंद को चोट लगी। वहीं आनंद को इस बात की अधिक चिंता थी कि मुन्ना बिनावजह पीटा जाएगा। अपराध यूँ तो बड़े-बड़ों को परेशान करने के लिए काफी होता है मगर अपराधी होने का बोध बाल-मन जिस सरलता व सिद्दत से महसूस कर पाता है, बड़े नहीं कर पाते । बड़े, पहले तो अपने कुटिल तर्कों द्वारा अपराध स्वीकार ही नहीं करते, सौभाग्य से यदि ज्ञान हो भी गया तो यह कहकर अंतरआत्मा में प्रविष्ट हो रहे सदविचारों को झटक देते हैं कि एक मैं ही गलत थोड़े न हूँ ! ऐसा तो सभी करते हैं !(जारी......)                 

8 comments:

  1. मुन्ना को एक तरफ इस बात का भय था कि बाबा को अब पता चल जाएगा कि उनकी साइकिल वह चोरी से ले आता है दूसरी ओर इस बात का दुःख कि उसके कारण आनंद को चोट लगी। वहीं आनंद को इस बात की अधिक चिंता थी कि मुन्ना बिनावजह पीटा जाएगा। ‘अपराध’ यूँ तो बड़े-बड़ों को परेशान करने के लिए काफी होता है मगर अपराधी होने का ‘बोध’ बाल-मन जिस सरलता व सिद्दत से महसूस कर पाता है, बड़े नहीं कर पाते ।

    bahut sundar roop se abhivyakt kiya hai aapne man ki komal bhaavnaayein.

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  2. बढियां चल रहा है संस्मरण

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  3. बहुत सुंदर जी,वेसे एक बार तो रोंगटे खडे हो गये, लेकिन जब देखा की दोनो बच्चे सुर्क्षित हे तो अच्छा लगा, धन्यवाद

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  4. बाल-मन और बड़ों के मन के बीच के फर्क का अच्छा चित्रण.

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  5. देवेद्र भाई ,
    प्रवास के चलते देर से आ पाया हूं केवल इतना ही कहूँगा कि यह हादसा भयावह भी हो सकता था ! इस मामले में 'बच्चे' 'बड़ों' से 'बड़े' होते हैं सहमत हूं !

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  6. कमाल का विवेचन किया है बड़ों और बच्चों की मानसिकता का। सच में, बड़ों का अपना तर्कशास्त्र है।

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  7. बच्चे चोट से कम, बहते खून को देखकर अधिक घबड़ाते हैं।
    खून देखकर घबराहट तो होती ही है ... हाँ कुछ लोगों को छोड़कर

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  8. ये ब्लॉग तो मैंने अभी तक देखा ही नहीं था 😊 कितनी प्यारी यादें।

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