20 November, 2010

यादें-23 ( हमें क्या पता हम तो उधर तैर रहे थे…! )



            दूसरे दिन, मध्याह्न 12 बजे, अपने निर्धारित योजना को मूर्तरूप देने एकत्र हुए...तीनो बाल जासूस। छुट्टी का दिन होने के कारण पंचगंगा घाट पर साफा-पानी लगाने वालों और नित्य स्नान करने वालों की भीड़-भाड़ थी। थोड़ी देर की तैराकी, श्वांस रोककर उल्टा लेटने के अभ्यास के बाद तीनो की हिम्मत बढ़ी । उन्हें लगा कि डुबकी मारकर बंधन खोलना बहुत कठिन नहीं है। विशाल ने हँसते हुए आनंद से पूछा, क्यों...! बांधे हाथ-पैर ?”  आनंद तो पहले से ही तैयार था।  बोला, हाँ, हाँ, देखो मैं कितनी आसानी से निकल आता हूँ !” फिर क्या था ! आनंद तख्ते पर जा लेटा, मुन्ना ने उसके पैर गमछे से कसकर बांध दिया और विशाल ने हाथ। देखते ही देखते आनंद घाट पर पानी की धरातल पर बधे, काठ के तख्ते पर जैसे तैसे खड़ा हो, दोनो पंजों के बल उछल कर, सर के बल गहरे पानी में छपाक से कूद गया।

           इस घाट पर ऊँची-ऊँची मढ़ियाँ हैं। एक दो सीढ़ी के बाद ही गहराई की थाह पाना कठिन है। जो बच्चे तैरना नहीं जानते, वे इस घाट पर नहीं आते मगर जो तैरना जानते हैं, उनके लिए यह घाट स्वर्ग है। ऊँची मढ़ी पर चढ़कर छपाक से पानी में हेडर साधना और पानी के भीतर ही भीतर तैर कर कलाबाजी दिखाते हुए दूर किसी कोने से हँसते हुए निकलकर, साथियों को हैरत में डालना, गंगा में तैरने वाले इन किशोरों के लिए आम बात है। भीड़-भाड़ होने के बावजूद किसी का भी ध्यान बच्चों की शैतानी पर नहीं गया। यहाँ के लोगों के लिए बच्चों का यह खेल माँ की गोद में दुधमुंहे बच्चों की उछल-कूद के सिवा कुछ अधिक मायने नहीं रखता ।

           आज विशेष बात थी । आज एक जासूस कुछ खास करने के इरादे से कूदा था। दोनो मित्र सांस रोके आनंद के निकलने का इंतजार कर रहे थे। चौकन्ने हो, कभी इधर देखते तो कभी उधर। उन्हें लगता कि कहीं चुपके सा बाहर निकलकर हँस तो नहीं रहा है। मगर हाय ! एक दो बार ऊपर आने के बाद आनंद लगभग पाँच मिनट तक बाहर नहीं निकला तो दोनो घबरा कर चीखने-चिल्लाने लगे... आनंद डूब गया..!..आनंद डूब गया..!...बचाओ.s..s..बचाओ..s..s..!” फिर तो घाट पर कोहराम मच गया...लोग दौड़े...मल्लाह दौड़े ..मल्लाहों के बच्चे दौड़े ...असंख्य प्रश्न...कब…? कैसे…? कहाँ…? ....दोनो के एक ही उत्तर ...यहीं से कूदा था ...! हाथ-पैर बांधकर..! पाँच मिनट हो गया नहीं निकला !” दूसरी बात होती तो मल्लाह भी समझते कि अभी निकल आएगा लेकिन जब सुना कि हाथ-पैर बांधकर कूदा है तो एक-एक कर सभी पानी में छलांग लगाने लगे। कुछ ही पल में जब एक मल्लाह ने आनंद के निष्प्राण से शरीर को नदी से बाहर निकाला तो सभी के चेहरे भय की आशंका से हदसे हुए थे ! आनंद की हालत देखने लायक थी। हाथ-पैर वैसे ही बंधे थे...पेट गुब्बारे की तरह फूला हुआ था...! आँखें बंद...! पहली नज़र में उसे देख कर कोई भी यही समझता कि किसी ने बांध कर नदी में फेंक दिया है मरने के लिए। तभी कोई चीखा..सांस चलत हौ...! पेट के बल लेटाओ..! पीठ  दबाओ..! जिस मल्लाह ने उसे बाहर निकाला, वह तो हीरो था..। जोर से चीखा..वही तs करे जात हई मालिक...! अब सबै बुद्धि बतावे बदे कपार पर मत चढ़ा..! हमे पता हौ कि का करे के हौ। एक पल देर किए बिना उसने आनंद को पेट के बल लिटाया और धीरे-धीरे कुशल वैद्य की तरह पीठ दबाने लगा। .... कुछ ही पल में आनंद के मुँह से ढेर सारा पानी निकलने लगा...

             इधर, मुन्ना-विशाल से लोगों ने पूछना शुरू किया तो मारे डर के उन्होने यही कहा,” हमें का पता…! हम तो उधर तैर रहे थे...! हाँ, हमने उसे हाथ-पैर बांधकर नदी में कूदते देखा था ! तभी तो चिल्लाए..कि कहीं डूब न जाय । कोई बड़बड़ाया..पैर तs मान ला अपने से बंधले होई..लेकिन हाथ कैसे बांध लेई..? जरूर दाल में कुछ काला हौ ! मुन्ना और विशाल ने सुना तो डर के मारे घिघ्घी बंध गई ! दोनो के पास भगवान से दुआ मागने के सिवा कोई चारा नहीं था। उनका मन कर रहा था कि वहाँ से भाग जांय लेकिन आनंद की हालत देख कर वहाँ से हटने की इच्छा भी नहीं हो रही थी। ईश्वर का लाख-लाख शुक्रिया कि थोड़ी ही देर में आनंद को होश आ गया...होश में आने के बाद भी उसकी हालत कुछ बोलने लायक नहीं थी। उसने इतना ही कहा...हम.. हाथ-पैर बांधकर... नदी में... तैरने का अभ्यास.. ” … फिर बेहोशी के आलम में चला गया। सभी उसकी बात सुनकर हँसने और कोसने लगे...ससुर के नाती..चला तोहार किस्मत अच्छा रहल जौन बच गइला... नाहीं तs अपनी ओर से मरे कs पूरा इंतजाम कैले ही रहला। तब तक कोई चीखा..राहे दs अभहिन एकर हालत ठीक ना हौ...एहके घर पहुंचा द.s..सभी एक श्वर में बोले..हाँ..हाँ..घरे पहुँचा दs..तब तक आनंद के डूबने की खबर उसके घर तक पहुँच चुकी थी ...उसके सभी भाई दौड़े-दौड़े घाट पर आ चुके थे। मल्लाह ने आनंद को उठाकर वीरू भैया कि गोद में देते हुए कहा...ला..! संभाला..! आज तs गैले रहलन..। आनंद के भैया बिना कुछ बोले आनंद को लिए घर की ओर दौड़े..

             भीड़ छट गई तो मुन्ना-विशाल के भी जान में जान आई। मुन्ना ने विशाल से कहा..हम तो पहले ही कह रहे थे कि यह पागलपन है...हमारी बात तो तुम लोग सुनते ही नहीं...। अपने तो मरता ही हमे भी मरवाने का पूरा इंतजाम कर दिया था। विशाल बोला..यह कौन जानता था कि डूब ही जाएगा...हम लोगों को भी साथ ही साथ डुबकी लगानी चाहिए थी..! मुन्ना झल्लाकर बोला, अच्छा…! अभी तुमको भी जानना शेष है...! जाओ तुम भी कूद मरो...! साथ-साथ डुबकी लगानी चाहिए थी ! अभी खतरा टला नहीं है। तुमने लोगों की बातें नहीं सुनी कह रहे थे...पैर तो बांध लिया मगर हाथ कैसे अपने से बांध सकता है!’ उनका इशारा हमी लोगों पर था। मुन्ना की बात सुनकर विशाल का भय और भी बढ़ गया। दोनो घर जाने के बजाय वहीं बैठकर देर तक बचने का उपाय सोचते रहे । विशाल ने कहा..कहीं आनंद ने हमारा नाम ले लिया तो…?” मुन्ना के आँखों के सामने साइकिल की सवारी में हुई दुर्घटना का चित्र कौंध गया । उसने पूरे विश्वास के साथ उत्तर दिया..आनंद बेवकूफी तो कर सकता है मगर लाख पिटने के बाद भी हमारा नाम नहीं लेगा। मुन्ना की बात सुन विशाल ने संतोष की सांस ली। अंत में यही निष्कर्ष निकला कि सबकुछ आनंद के बताने पर ही निर्भर करता है। यदि आनंद ने हमारा नाम नहीं लिया तो कोई हमे कुछ नहीं कहेगा। हम तो बस यही उत्तर देंगे कि हमें क्या पता हम तो उधर तैर रहे थे…!
(जारी....)    

9 comments:

  1. मस्त चल रही है कहानी, नन्हें जासूसों की।

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  2. लड़के यैसी बेवकूफी कर सकते हैं.यादेँ ठीक चल रही है.

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  3. तभी कहा था एक चपत लगाने को फिर भी बच्चू माने नहीं कूद ही गए ..अब कभी कभी नाहक ही मैं कहता हूँ कि यहाँ की गंगा माँ नहीं हत्यारिन हैं .....ऐसी भी चिबिल्लई क्या कि हाथ पाँव बांधकर गंगा में कूद पड़ो..चलिए आनंद को माँ गंगा ने आशीर्वाद दे दिया है .....

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  4. वही हुआ जिसका मुझे भय था , पिछले एपीसोड से ही इस विचार पर क्रोध आ रहा था मुझे ! फिलहाल इस घटना को , बालमन पर कथा कहानियों के चमत्कारिक / अतिशयोक्तिपूर्ण विवरणों के दुष्प्रभाव की अभिव्यक्ति ही मानूंगा ! आनंद का बच जाना राहत है !

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  5. hmmm.
    abhi anand ke sath ka safar jari rakhiye.
    intezaar rahega

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  6. नन्हे जासूसों के कारनामों में आनन्द आ रहा है।

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  7. hmmm.
    abhi anand ke sath ka safar jari rakhiye.
    intezaar rahega

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  8. कभी कभी अधिक आत्मविश्वास भी जानलेवा हो जाता है जैसा की यहाँ आनंद के साथ हुआ...बढ़िया प्रस्तुत देवेन्द्र जी..अगली कड़ी का इंतज़ार है....रोचक कहानी...बधाई

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  9. यह श्रृंखला तो सांस रोक कर पढ़ गया. प्राण बचने की खबर के साथ ही रूक पाया.
    रोमांचक

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