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वह आपाताकाल का दौर था। लोक नायक जय प्रकाश नारायण का 5 जून सन् 1974 को पटना के ऐतिहासिक मैदान में दिया गया संपूर्ण क्रांति का नारा संपूर्ण क्रांति अब नारा है भावी इतिहास हमारा है की धार आपात काल की बर्बरता के आगे मंद पड़ चुकी जान पड़ती थी। हर जोर जुर्म के टक्कर में संघर्ष हमारा नारा है. इन्कलाब जिंदाबाद जैसे नारे अब नहीं सुनाई पड़ते थे। वरना आनंद की गली से जब भी इन्कलाब जिंदाबाद के नारे लगाती भींड़ गुजरती तो वह भी ‘तीन क्लास जिंदाबाद’ चीखते हुए भींड़ में शामिल हो जाता। ‘इन्कलाब जिंदाबाद’ के नारे को बहुत दिनो तक ‘तीन क्लास जिंदाबाद’ ही समझता रहा। 26 जून 1975 को आधी रात के बाद जब इंदिरा गांधी ने देश में आपात काल की घोषणा की तो सूरज निकलने से पहले ही इंदिरा विरोधी आंदोलन की अगुवाई कर रहे विपक्ष के बड़े-बड़े नेता गिरफ्तार कर लिये गये। जिनमें जय प्रकाश नारायण, अटल बिहारी वाजपेयी, मोरारजी देशाई, चौधरी चरण सिंह और लाल कृष्ण आडवाणी जैसे नेता प्रमुख थे। 26 जून को देश ने लोकतंत्र को आपातकाल की काल कोठरी के भीतर कैद पाया। सरकारी कामकाज पर अदालतें भी टिप्पणी नहीं कर सकती थीं। प्रेस पर सेंशर लगा दिया गया था। सरकार विरोधी कोई खबर बाहर नहीं आ सकती थी। सरकार विरोधी हर गतिविधी बर्बरता से कुचल दी जा रही थी। आपात काल लगाने की मुख्य वजह सरकार का चौतरफा घिर जाना था। एक ओर जे पी आंदोलन का दबदबा तो दूसरी तरफ इलाहाबाद उच्चन्यायालय का फैसला। फैसले में सन् 1971 के रायबरेली चुनाव में धांधली के आरोप को सही मानते हुए सांसद के तौर पर उनके चुनाव को अवैध करार कर दिया गया था। सर्वोच्च न्यायालय से भी कोई खास राहत नहीं मिली। सुप्रीम कोर्ट ने कुर्सी तो छोड़ दी लेकिन संसद में वोट देने का अधिकार भी छीन लिया। इन हालातों से निकलने के लिए आपात काल ही सुगम रास्ता समझ में आया।
आपातकाल लागू करने के साथ ही इंदिरा गांधी ने 20 सूत्री कार्यक्रम की घोषणा की। संजय गांधी, बंसीलाल, विद्याचरण शुक्ला और ओम मेहता जैसे नेता प्रमुख सलाहकार व कर्ताधर्ता बनके उभरे। जिनके जिम्मे 20 सूत्री कार्यक्रम लागू कराने की जिम्मेदारी थी। आपातकाल के दौरान राजनैतिक गिरफ्तारियों के अलावा जबरन नसबंदी और बड़े पैमाने पर झुग्गी झोपड़ियों का सफाया किया गया। झुग्गी झोपड़ियों की सफाई तो लोग भूल गये लेकिन जबरी नसबंदी का आतंक लोगों को अभी तक याद है।
इन सब घटनाओं से बेखबर आनंद और उसके दोस्त बचपन की अपनी शैतानी में ही मशगूल रहते थे। उन्हें इन घटनाओं की खबरें बी0बी0सी लंदन पर पिता जी द्वारा कान लगाकर सुनना महान वाहियात लगता था। खास कर तब और भी ज्यादा वाहियात जब क्रिकेट की कमेंट्री आ रही होती। आनंद को इस बात की अधिक चिंता रहती कि गावस्कर की सेचुंरी बन जाय या नये उभरते आल राउंडर कपिल देव ने आज कितने विकेट लिये। गली-गली में जब लोग एक दूसरे को चिढ़ाते...”भाग जा घरे में नाहीं तs तोहरो नसबंदी हो जाई…!” तो उस समय आनंद को नसबंदी जैसे शब्दों का सिर्फ यही अर्थ पता होता कि इससे अधिक बच्चे नहीं होते। कई बार वह रातों की नींद इस चिंता में बर्बाद कर चुका था कि उसके पिता को नसबंदी करानी चाहिए थी या नहीं। अंत में वह कहता कि यदि पिता जी ने नसबंदी करा दी होती तो मैं कैसे पैदा हुआ होता ! ये तो कहते हैं कि दो या तीन बच्चे होते हैं घर में अच्छे ! स्कूलों में नियमित होने वाली पढ़ाई से और रोज-रोज होने वाले आंदोलनों पर रोक से, विद्यार्थियों में एक अजीब सी बेचैनी थी। कुल मिलाकर आपातकाल का बच्चों पर यही खास प्रभाव देखने को मिला।
आपातकाल उस राष्ट्र के लिए जिसने स्वस्थ्य लोकतंत्र की खुली हवा में सांस लेना सीख लिया हो एक अभिशाप था। लोगों के मौलिक अधिकारों का हनन था। साथ ही एक तानाशाह के हाथों लग जाने पर भस्मासुर की तरह सबकुछ जला देने की क्षमता रखने वाला था। यह तो अच्छा हुआ कि इंदिरा जी को अपनी गलती का शीघ्र एहसास हो गया वरना संजय गांधी जैसे महत्वाकांक्षी युवराज तो गरीबों पर कहर बन कर टूटने का माध्यम बन जाते। उनको खुश करने के लिए अधिकारी जबरी नसबंदी से आगे ना जाने किस स्तर तक पहुँच जाते कहना मुश्किल है। न तो राजलोलुप व्यक्ति की महत्वाकांक्षा कभी कम होती है न चाटुकारों की चाटुकारिता शक्ति। इतना सब कुछ होते हुए भी आपातकाल के कुछ फायदे भी थे। लोगों को जंगल राज में कानून का पहली बार एहसास हुआ था। सरकारी कार्य समय से होने लगे। कर्मचारी भय से ही सही अच्छा कार्य करने के लिए बाध्य हुए। कालाबजारी पर कुछ हद तक अंकुश लगा। कीमतें कम हुईं। जनसंख्या नियंत्रण का इंदिरा जी का प्रयास भी सराहनीय साबित होता यदि इसका गलत इस्तेमाल न होता।
जंगली के पिता जहां पंक्चर साइकिल लेकर भी दौड़ते-भागते समय से ऑफिस जाने की विवशता पर खीझते वहीं जंगली के स्कूल में चल रही पढ़ाई की तरक्की और छात्र आंदोलन की समाप्ती पर खुश भी होते। मोहल्ले में उनको यह कहते हुए सुना जा सकता था...”हे देखो..बहुत अच्छा किया इंदिरा जी ने। हम तो ..हे देखो…पहिले से परिवार नियोजन कराये हैं। हमारे दो ही बच्चे हैं। हे देखो...स्कूल में पढ़ाई जम कर हो रही है। हे देखो…फस्ट आएगा मेरा बेटा।“ कोई चुटकी लेता...”सबेरवाँ पंक्चर साइकिल लेहले कहाँ भागत रहला हs ? आपातकाल न होत तs खा पी के दुपहरे जैता न !” वे कहते,“इससे क्या ?...हे देखो…समय से ऑफिस तो जाना ही चाहिए। हे देखो...जैसा बोओगे वैसा काटोगे..तुम हरामखोरी करोगे तो तुम्हारे बच्चे भूखे मरेंगे ! हे देखो….देश में जब ज्यादे हरामखोर जुट जांय तो इनका इलाज ऐसे ही करना पड़ता है। हे देखो…..हमारे देश भक्तों ने कितने त्याग कर के हमें आजादी दिलाई ?...हम क्या कर रहे हैं अपने बच्चों के लिए ? हे देखो ...।” तब तक उनको चटकाने वाला हाथ जोड़ता....”बस करा मालिक ! समझ गइली।“ सब उनके उपदेश से खीझते मगर जानते कि इनकी बातों में कड़वी सच्चाई है। (जारी....)
आनंद गलत नहीं समझता था , तीन क्लास जिंदाबाद माने थर्ड क्लास लोग ही जिंदाबाद हो गए हैं आज !
ReplyDeleteचलती रहें यादें यूँ ही अनवरत। शुभकामनायें।
ReplyDeleteआपातकाल के भय उभर उभर के अब भी आ जाते हैं, लोकतन्त्र की यादों में।
ReplyDeletehe dekho. agli kadi ka intezaar rahega.
ReplyDeletewaise to apatkal ke bare mein sirf kuchh kuchh suna tha lekin yahan kafi jankari batorne ko mil rahi hai.
वैसे ही एक आपातकाल की बहुत जरुरत है आज भारत को . बहुत से लोग लोकतंत्र द्वारा प्रदान किये अनेक अधिकारों का अनावश्यक उपयोग कर रहे है व राष्ट्रीय एकजुटता के लिए खतरा बन रहे है. जरूरी है की उनके साथ सख्त बर्ताव किया जाय . उन्हें पीटकर जेलों में डाला जाय !
ReplyDeleteहमें भी याद है वह आपातकाल का दौर .. पर उस समय इसके मायने से शायद उतने वाकिफ नहीं थे.
ReplyDeleteआपातकाल के दौरान एक बार मैं गोरखपुर से बनारस जा रही था ट्रेन में. प्रत्येक स्टेसन पर प्लेटफार्म में बन्दूक लिये सैनिक दिखाई देते,और मैं खिडकी से झांकने लगता.ये देखकर एक स्टेसन पर एक सैनिक मुझे डांटने लगा "क्या देख रहे हो ?बहुत उछल-कूद कर रहे हो ?"और मैं दुबक कर सीट पर बैठ गया,डरा सहमा-सा.क्या कर सकता है कोई बन्दूक की नोक के सामने ?
ReplyDeleteतब देश के मंत्रिमण्डल ने आपात्काल घोषित किया था आजकल जिस किसी भी माओवादी, खाओवादी, आदि का दिल हफ्तावसूली को करता है वही अपने इलाके में आपात्काल लगा देता है।
ReplyDeleteyaadein..
ReplyDeletehttp://shayaridays.blogspot.com