मकर संक्रांति का त्योहार ज्यों-ज्यों करीब आता त्यों-त्यों पक्के महाल के घरों की धड़कने तेज होती जातीं। बच्चे पतंग उड़ाने की चिंता में तो माता-पिता बच्चों की चिंता में दिन-दिन घुलते रहते। कमरे में लेटो तो यूँ लगता कि हम एक ऐसे ढोल में बंद हैं जिसे कई एक साथ पीट रहे हैं। अकुलाकर छत पर चढ़ो तो बच्चों की पतंग बाजी देखकर सांसें जहाँ की तहाँ थम सी जातीं। तरह-तरह की आवाजें सुनाई देतीं....अरे...मर जैबे रे.s..s..गिरल-गिरल..s..s..कटल-कटल.s..s..बड़ी नक हौ..!..आवा, पेंचा लड़ावा.....ढील दे रे.s..ढील दे.s..खींच के.s..भक्काटा हौ...। जिस दिन पिता जी की छुट्टी होती उस दिन आनंद के लिए घर पर पतंग उड़ाना संभव नहीं था। उस दिन वह श्रीकांत या दूसरे दोस्तों के घरों की शरण लेता मगर जब पिताजी नहीं होते आनंद खूब पतंग उड़ाता। हाँ, मकर संक्रांति के दिन सभी को अभय दान प्राप्त होता था। आनंद के घर की छत के ठीक पीछे दूसरे घर की ऊँची छत थी। जब कोई पतंग कट कर आती तो वहीं रह जाती। उस पतंग को लूटने के चक्कर में आनंद बंदर की तरह उस छत पर चढ़ता। जरा सा पैर फिसला नहीं कि तीन मंजिल नीचे गली में गिरने की पूरी संभावना थी। उस छत पर चढ़ते आनंद के भैया उसे देख चुके थे। सख्त आदेश था कि पतंग लूटने के चक्कर में वहाँ नहीं चढ़ना है मगर पतंग लूटने का मोह आनंद कभी नहीं छोड़ पाता। यह तो किस्मत अच्छी थी कि कभी गिरा नहीं वरना कुछ भी हो सकता था।
यूँ तो भारत के सभी प्रांतों में अलग-अलग नाम से इस त्योहार को मनाते हैं लेकिन उत्तर प्रदेश में मुख्य रूप से स्नान-दान पर्व के रूप में मनाया जाता है। इस दिन गंगा स्नान का विशेष महत्व है। प्रयाग का प्रसिद्ध माघ मेला भी इसी दिन से प्रारंभ होता है। सूर्य की उपासना का यह त्यौहार हमें अंधेरे से उजाले की ओर ले जाने वाला त्योहार है। इस दिन से सूर्य उत्तरायण होते हैं। दिन बड़े व रातें छोटी होती जाती हैं। माना जाता है कि भगवान भाष्कर शनि से मिलने स्वयंम् उनके घर जाते हैं। शनि देव मकर राशि के स्वामी हैं इसलिए इसे मकर संक्रांति के नास से जाना जाता है। गंगा स्नान के पश्चात खिचड़ी दान व खिचड़ी खाने का चलन है। इस दिन की (उड़द की काली दाल से बनी) खिचड़ी भी साधारण नहीं होती वरन एक विशेष पकवान, विशेष अंदाज में खाने का दिन होता है जिसे उसके यारों के साथ खाया जाता है। लोकोक्ति भी प्रसिद्ध है... खिचडी के हैं चार यार । दही, पापड़, घी, अचार।। इसलिए इसे खिचड़ी के नाम से भी जाना जाता है। त्योहार से पूर्व ही विवाहित बेटियों के घर खिचड़ी पहुँचाने के अनिवार्य सामाजिक बंधन से भी इस पर्व के महत्व को समझा जा सकता है। इस त्योहार को सूर्य की गति से निर्धारित किया जाता है इसलिए यह हर वर्ष 14 जनवरी के दिन ही मनाया जाता है।
मकर संक्रांति ज्यों-ज्यों करीब आता त्यों-त्यों पतंगबाजी का शौक परवान चढ़ता। गुल्लक फूट जाते। एक-एक कर सभी बड़ों से मंझा-पतंग खरीदने के पैसे मांगे जाते। खिचड़ी से एक दिन पहले जमकर खरीददारी होती। देर शाम तक नये खरीदे गये पतंगों के कन्ने साधे जाते। थककर जब बच्चे सोते तो नींद में भी पंतगबाजी चलती रहती। दूसरी तरफ पिताजी अपनी खरीददारी में परेशान रहते। बड़ों के लिए यह पर्व जहाँ धार्मिक-सामाजिक दृष्टि से महत्वपूर्ण होता वहीं बच्चों के लिए इसका महत्व मात्र पतंगबाजी और तिल-गुड़ के लढ्ढू खाने तक ही सीमित था। इस दिन के लिए जहाँ पिताजी जप-तप, दान-स्नान की तैयारी में व्यस्त रहते वहीं माता जी बच्चों के लिए तिल-गुड़ के लढ्ढू, चीनी खौलाकर उसके शीरे में मूंगफली के दाने की पट्टी बनाने में लगी रहतीं। आनंद वैसे तो नित्य गंगा स्नान करता मगर आज के दिन पतंगबाजी के चक्कर में नहाने में भी समय जाया नहीं करना चाहता था। बिना स्नान किये भोजन तो क्या एक लढ्ढू भी छूने की इजाजत नहीं थी वरना संभव था कि वह पूरे दिन बिना स्नान के ही रह जाता।
इधर सुरूज नरायण रेती पार से निकलने की तैयारी करते उधर आनंद आकाश ताक रहा होता। उसे बस प्रतीक्षा इस बात की होती कि कहीं आकाश में एक भी पतंग उड़ते दिख जाय । सूर्य का उगना नहीं, पतंग का आकाश में दिखना मकर संक्रांति के आगाज का संकेत होता। धूप निकलने तक तो समूजा बनारस आनंद के इस महापर्व में पूरी तरह डूब चुका होता। क्या किशोर ! क्या युवा ! सभी अपनी-अपनी पेंचें लड़ा रहे होते। हर उम्र के लिए यह त्योहार गज़ब की स्फूर्ती प्रदान करने वाला होता। वृद्ध धार्मिक क्रिया कलापों में तो किशोर पतंग बाजी में मगन रहते । सबसे दयनीय स्थिति माताओं की होती। एक ओर तो वे अपने पति देव के धार्मिक अनुष्ठानों की पूर्णाहुती देतीं वहीं दूसरी ओर बच्चों की चिंता में दिन भर उनकी सासें जहाँ की तहाँ अटकी रहतीं। युवा पतंग के पेंचों के साथ-साथ दिलों के तार भी जोड़ रहे होते। जान बूझ कर दूर खड़ी षोड़शी के छत पर पतंग गिराना और न तोड़ने की मन्नत करना बड़ा ही मनोहारी दृष्य उत्पन्न करता । ऐसे दृष्यों को देखकर कहीं सांसे धौंकनी की तरह तेज-तेज चलने लगती तो कहीं लम्बी आहें बन जातीं। वे खुश किस्मत होते जो किसी बाला से पतंग की ‘छुड़ैया’ भी पा जाते।
सूर्यास्त के समय का दृष्य बड़ा ही नयनाभिराम होता। समूचा आकाश रंग-बिरंगे पतंगों से आच्छादित। जिधर देखो उधर पतंग। पतंग ही पतंग। दूर गगन में उड़ते पंछी और पतंग में भेद करना कठिन हो जाता। पंछिंयों में घर लौटने की जल्दी। पतंगों में और उड़ लेने की चाहत। लम्बी पूंछ वाली पतंग। छोटी पूंछ वाली पतंग। काली पतंग। गुलाबी पतंग। कोई पतंगबाज फंसा रहा होता पतंग से पतंग तो कोई पतंगबाज लड़ा रहा होता पतंग से पतंग । कोई कटी पतंग सहसा पा जाती सहारा। थाम लेती उसका हाथ उसके आगे-पीछे घूमती दूसरी मनचली पतंग। कोई दुष्ट ईर्ष्या वश खींच लेता उसकी टांग। शोहदे चीखते ...भक्काटा हौ.....! हो जाती वह...फिर से कटी पतंग। गिरने लगती बेसहारा दो कटी पतंग। सहसा खुल जाता किसी अभागे का भाग। थाम लेता एक की डोर। खींची चली आती दूसरी भी, पहली के संग। लम्बी होने लगतीं परछाईयाँ । गुलाबी होने लगता समूचा शहर । पंछियों मे बदल जाते सभी पतंग सहसा। गूँजने लगती चहचहाहटें। छतों से उतरकर कमरों में दुबकने लगते बच्चे। चैन की सांस लेता थककर निढाल हुआ दिन। खुशी से झूमने लगता चाँद। सकुशल हैं मेरे आँखों के तारे !
( जारी......)
hame bhi yaad hai kaise subah subah jabardasti nahaya jata tha thand me...aur fir teel ki lakariyon pe haath senkna aur maaa ke dwara teel aur gud dekar kahna uska kahna manoge na...uska dhyan rakhoge na...:)
ReplyDeletebahut pyari yaad:)
बढ़िया यादें लिख रहे हो पंडित जी ...हार्दिक शुभकामनायें !
ReplyDeleteबय यही खा रहे हैं आज, दही, पापड़, घी, अचार।
ReplyDeleteबहुत सुंदर जी अच्छी पतंगो की याद दिलाई आप ने.... धन्यवाद
ReplyDeleteखिचडी के हैं चार यार । दही, पापड़, घी, अचार।। ---भूख लग गयी !
ReplyDeleteबहुत सुन्दर यादें
ReplyDeleteमकर संक्रांति साल का पहला त्यौहार... सबके लिए कुछ न कुछ ........ एक नई उमंग लिए आता है यह त्यौहार!!!
chaliye makar sankranti pe is bar shayad ghar na jana ho, lekin til gud ke laddu jo munh mein pani kheench laye hain wo to kahin se jugadne hi padenge.
ReplyDeleteaur hamare yahan ye tyohar ek aur nam se manaya jata hai "budki" aur is din bachchon ko darane ke liye kaha jata hai ki naha lo nahi to budki ke gadhe ban jaoge.
bachpan yad aa gaya sir, sach mein.
मकर संक्रांति पर जानकारीपरक पोस्ट.
ReplyDeleteआभार.
मकर संक्रांति की छठा को बहुत मनोरम रंगों में बाँधा है आपने देवेन्द्र जी .... .
ReplyDeleteमकर संक्रांति का जो उत्साह बनारस में दिखता है वह यहाँ दिल्ली में नदारत है. यहाँ तो लोहिणी धूमधाम से मनाई जाती है
ReplyDeleteआ रही है खिचड़ी और खिचड़ी को चारों उसके दोस्तों के साथ खाया जाएगा ,मगर अधिक ठण्ड के कारण नहाना तो जरूरी नहीं.
ReplyDeleteपतंगबाजी विशेष कर बाला से पतंग की छुड़ाई वाला प्रसंग मजेदार रहा ! आनंद की यादों में अपना बचपन भी शामिल लगता है !
ReplyDeleteमकर सक्रांति के लेकर आपने बेहद दिलचस्प लेख लिखा है। इसीलिए ये पोस्ट बहुत पसंद आई।
ReplyDeleteयही खा रहे हैं आज, दही, पापड़, घी, अचार। धन्यवाद|
ReplyDeletebhai pandeyji bahut sundar post ke liye tatha makar sankranti ke liye aapko badhai
ReplyDeleteआदरणीय देवेन्द्र पाण्डेय जी
ReplyDeleteआपको मकर सक्रांति की हार्दिक शुभकामनायें ......आपकी पोस्ट निश्चित रूप से ग्राह्य है ..यूँ ही अनवरत लिखते रहें ....आपका शुक्रिया
yaadon ka sunhara safar...........
ReplyDeleteachcha laga,
abhaar.
आज गुरू केतना लोगन क पतंग कटवउल आउर केतना लोगन क लुटल । तिलवा गट्टा त राजा चूड़ा के साथ चपले होइब । दलाईलामा से भेट भी कइल का ?
ReplyDeleteगणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनायें.....
ReplyDelete---------
हिन्दी के सर्वाधिक पढ़े जाने वाले ब्लॉग।
update it
ReplyDeleteसंक्रांति और खिचडी संक्रांति और पतंगबाजी जुडी हुई चीजें हैं । तिल गुड के लड्डू और गुड की रोटी खूब घी से लिपटी यह तो संक्रांति के विशष पकवान हैं सरदी भी जम कर पटती है तो ये सारा भारी खाना चुटकियों में हजम । आपके संस्मरणों ने यादें जगा दीं ।
ReplyDeleteहफ़्तों तक खाते रहो, गुझिया ले ले स्वाद.
ReplyDeleteमगर कभी मत भूलना,नाम भक्त प्रहलाद.
होली की हार्दिक शुभकामनायें.
होली के पर्व की अशेष मंगल कामनाएं। ईश्वर से यही कामना है कि यह पर्व आपके मन के अवगुणों को जला कर भस्म कर जाए और आपके जीवन में खुशियों के रंग बिखराए।
ReplyDeleteआइए इस शुभ अवसर पर वृक्षों को असामयिक मौत से बचाएं तथा अनजाने में होने वाले पाप से लोगों को अवगत कराएं।
happy holi to all
ReplyDeletebahut dinon se anand ki koi yad nahi aayi.. agar vyast hain to koi bat nahi, waqt mile to likhiyega intezaar rahega.
ReplyDeleteरामनवमी की हार्दिक शुभकामनाएं|
ReplyDeleteबहुत सुन्दरता से लिखी गयी रचना जो उसी दिन ले गयी.......
ReplyDeleteतिल के लडू की याद आ गयी...
बहुत सुन्दर यादें...मकर संक्रांति की हार्दिक शुभकामनायें!
ReplyDeleteशायद आपने चने कि शाग की व्यख्या नहीं की है।
ReplyDelete