मुन्ना के घर की छत, एक बड़े घर से सटी थी। उसकी छत से बड़े घर की छत पर जाना एकदम आसान था। उस घर में कई परिवार किराए पर रहते थे जिनमे एक था विशाल शर्मा का परिवार। विशाल, पाँच भाइयों मे चौथे नम्बर का, दुबला-पतला, अपनी धुन में मगन रहने वाला, आनंद का हमउम्र था तो उससे तीन साल छोटा, दुबला-पतला एक बहुत शरारती और हिम्मती था झिंगन। विशाल शर्मा का परिवार था तो एक गरीब परिवार ही मगर ये दोनो भाई रोज बड़ी-बड़ी डीगें हाँकते थे। आज हमने ये किया, आज हमने वो किया, आज हमारे पापा हमारे लिए ये खिलौना लाए थे, आज हमारे घर क्या मस्त खाने में बना था। मुन्ना और आनंद विस्फारित नेत्रों से उनकी बातें सुनतेऔर सुन-सुन कर जलते थे। विशाल और झिंगन बातें तो खूब बड़ी-बड़ी करते मगर जब कभी आनंद या मुन्ना उनसे कहते कि जरा कभी हमको भी अपने घर ले चलो,अपने खिलौने दिखाओ तो दोनो साफ मुकर जाते।
एक दिन, विशाल की छत पर आनंद और मुन्ना गेंद खेल रहे थे । विशाल और झिंगन ऊपर नहीं थे । दैव संयोग कि खेलते-खेलते गेंद नीचे आंगन में गिर गई और गेंद के पीछे दोनो भाग कर नीचे आ गए। गेंद लेकर ऊपर लौटते वक्त उन्हें विशाल और झिंगन के सिसकने की आवाज सुनाई दी तो उनके दरवाजे से कान लगाकर दोनो भीतर की बात सुनने लगे । विशाल के पिता चीख रहे थे, ”बासी रोटी किसके साथ खाएँ ? मेरा खून पी लो हरामजादों ! तुम्हारे चाचाओं ने तो पहले ही मुझे कहीं का न छोड़ा। एक पैसे की आमदनी नहीं हुई दो साल से ! कैसे तुम लोगों को जिंदा रखते हैं यह हमी को मालूम है। आता होगा 'चांडाल' किराया मांगने !6 महीने से उसका किराया नहीं दिया। घर से निकाल देगा तो सड़क पर बैठ कर भीख मांगना पड़ेगा। अब हमारी ताकत नहीं रही किसी को पढ़ाने की। तुम्हारे बड़े भाई कहीं कमाने नहीं जाते, खा-खा कर कैसी चर्बी मोटी हो गई है नालायकों की ! समझाओ तो तीरअंदाज बने फिरते हैं। गए होंगे साले उसी घर में दोना चाटने जिसने हमें भिखारी बना दिया!“आनंद और मुन्ना को काटो तो खून नहीं। दोनो भयभीत, अचंभित वहाँ से भाग कर छत पर आए तो बहुत देर तक एक दूसरे को दम साधे, विस्फारित नेत्रों से घूरते ही रहे।
सबसे पहले मुन्ना ने ही मौन तोड़ा, “ कितने झूठे हैं दोनो ! सुना तुमने !! घर में खाने को नहीं, भूखे रहते हैं, मगर बात सुनो, कितनी लम्बी-लम्बी हाँकते हैं !!!” आनंद चहका, “ हाँ यार, उन्होने कभी नहीं कहा कि हमे ये तकलीफ है। इसका मतलब खिलौने और खीर-पूड़ी वाली सभी बातें झूठी हैं !” मुन्ना बोला, “ और नहीं तो क्या ! लेकिन एक बात तो मानना ही पड़ेगा कि दोनो हैं बड़े चालाक। इतने कष्ट में हैं,लेकिन किसी के आगे यह जाहिर नहीं होने दिया कि उनको और उनके परिवार को इतनी मुसीबतों का सामना करना पड़ रहा है !” आनंद बोला, “आने दो गपाड़ियों को ! आज पूछते हैं कि क्या खा कर आए हो ? रोज की तरह फिर बोले, ‘हलुआ-पूड़ी’ तो यहीं पटक के मारते हैं ! झूठे कहीं के…!” “अरे..रे, ऐसा हर्गिज मत करना।“ मुन्ना बड़े भाई की तरह समझाने लगा, “ तुम्हें नहीं मालुम गरीबी क्या होती है ! वे पहले से तकलीफ में हैं । तुमने अगर उन्हें बता दिया कि हमने उनके पिता की बातें सुन ली हैं तो वे मारे शर्म के धरती पर गड़ जाएंगे। मुसीबत के मारों को कभी शर्मिंदा नहीं करते। हो सके तो उनकी मदद करते हैं, नहीं कर सकते तो मजाक भी नहीं उड़ाते। वे जान गए तो हमसे कभी निगाह मिला कर बात भी नहीं कर पाएंगे और यह भी हो सकता है कि हमेशा के लिए हमसे बोलना ही बंद कर दें।“ आनंद को मुन्ना की बातें जम गई। उसने मुन्ना के ध्यान से देखा। उसे आज पहला बार एहसास हुआ कि उसका दोस्त उसके कहीं अधिक समझदार है। अभी तक उसके मन में उसके प्रति कोई बहुत अच्छी धारणा नहीं बनी थी लेकिन आज लगा कि बाबा के दुकान से पैसे उड़ाने,नई-नई शरारतों के लिए नए-नए तिकड़म लगाने के अलावा यह एक नेक दिल इंसान भी है। आनंद को वह आज अधिक प्यारा लगने लगा। उसी ने मौन तोड़ा, “ मुझे ऐसे क्या घूर रहे हो ? मैं सही कह रहा हूँ !” आनंद इतना ही बोल सका, “हाँ, तुम बिलकुल ठीक कह रहे हो। हमें यह बात किसी को नहीं बतानी चाहिए।“ इतने में उन्हें कदमों की आहट सुनाई दी, कुछ ही पल में, विशाल और झिंगन उनके सामने खड़े थे।
सूनी आँखें ध्यान से देखने पर ही दिखाई देती हैं, किसी के प्रति संवेदना हो तभी उसका दर्द जाना जा सकता है। आज भी दोनो ने वही उत्तर दिया लेकिन आनंद और मुन्ना की संवेदनशील नज़रों ने दोनो के दर्द को भीतर तक महसूस किया। दर्द, दिनमान की रोशनी में संवेदना के दो बूँद बन गालों पर एक पल के लिए ठिठके, दूसरे ही पल, मासूम उंगलियों द्वारा पोंछ लिया गए। विशाल ने तभी महसूस किया कि आज बात ‘कुछ और’ है। पूछ बैठा, ” पागल हो क्या ! क्यों रो रहे हो ? क्या हुआ ? आनंद कुछ न कह सका, मुन्ना ने बात संभाली, “कुछ नहीं यार, आज इसके बाबू जी इस पर बिगड़ गए ! इतना कहकर मुन्ना खिलखिलाकर हंसने लगा।“ मुन्ना की बात सुनकर आनंद को भी हंसी आ गई। दोनों को हंसता देख, विशाल और झिंगन का दर्द भी काफूर हो गया। चारों फिर धमाल मचाने लगे। (जारी....)
दोस्ती हॊ तो ऎसी ही, जिस मे दोस्तो का ख्याल रखा जाये, बहुत सुंदर यांदे जी धन्यवाद
ReplyDeleteप्यारा सा झूठ है ये ! बड़ा ही सन्देश परक !
ReplyDeleteव्यक्तिव निर्माण की झलक बचपन से ही मिलने लगती है .....आगे देखते हैं !
ReplyDeleteबहुत सुन्दर !
ReplyDeleteअतिउत्तम.काश ! बचपन की संवेदनशीलता ताउम्र कायम रहे !
ReplyDeleteintezaar hai...
ReplyDeleteकाश बचपन की मियाद ज्यादा होती..
ReplyDeleteकिसी के प्रति संवेदना हो तभी उसका दर्द जाना जा सकता है।
ReplyDeleteसम्वेदनाहीन को दर्द भी नहीं होता है शायद तभी वे दर्द भी बेदर्दी से देने को आतुर होते हैं